दोहा अपभ्रंश का जातीय छन्द कहलाता है। हिन्दी भाषा के स्वरूप निर्धारण से भी पहले से दोहा छन्द प्रचलित रहा है। इतना प्राचीन इतिहास होने के बावजूद आज भी दोहा उतनी ही मारक क्षमता के साथ लिखा जा रहा है।।।।।।।।।।।। इस विधा ने हर काल में अपने आप को परिवेश औanding वर्तमान में अपने समकालीन सरोकारों के कारण दोहा और अधिक सशक्त होता दिखाई पड़ता है। हमने यहाँ दोहा विधा में लेखन कanding , -समय , ,
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