आदिकाल से संसार में सत्य और न्याय के लिए संघर्ष करने का दायित्व क्षत्रिय ने निभाया है। विष तत्व का नाश करने और अमृत तत्व की रक्षा करने की क्षात्र- परंपर संसार के अस्तित्व के लिए आवश्यक और अनिवार्य है। क्षत्रिय ने अपने अचिन्त्य बलिदानों द्वारा इस परंपरा का सा तत्य बनाए रखा और इसके कारण ही भारत ने प्रत्येक क्षेत्र में विकास के प्रतिमान स्थापित किए। विश्वगुरु और सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत की भौत िक और आध्यात्मिक समृद्धि पर जब अर्द्धसभ्य और अविकसित वि देशियों की दृष्टि पड़ी तो उन्होंने छल-बल से भारत की संपदा को लूटने व नष्ट करने का प्रयत्न किया। बर्बर जातियों द्वारा भारत की संपत्ति और उसके मानबिन्दुओ ं पर किए जाने वाले इन आक्रमणों के विरुद्ध क्षत्रियों ने अनेकों शताब्दियों तक संघर्ष किया। अपने सर्वस्व का बलिदान करके भी उन्होंने भारतीय संस्की ति को जीवितरखने का प्रयत्न किया। शताब्दियों के इस संघर्ष ने क्षत्रियों कीराज्य-सत्ता को तो नष्ट किया ही,किन्तु साथ ही शत्रु के छल-प्रपंच ने क्ष त्रिय चरित्र पर भी आघात कर के उसे निर्बल बनाने का प्रयत्न क िया। परिणामस्वरूप सैंकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद जब भारत अपनी स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था तो पूरा देश नए भविष्य क ो लेकर आशान्वित था। विभिन्न वर्ग व समाज नई व्यवस्था वाले नए भारत में अपनी भ ूमिका तय कररहे थे किंतु क्षत्रिय समाज उस समय किंकर्तत् यविमूढ़ता की स्थिति में था। त्याग और बलिदान की नींव पर खड़े अपने स्वधर्म को भूलकर क्षत्रियजातिअपनीउपयोगिताकोखोदेनेकीस्थितिमें पहुंच चुकी थी। कृष्ण、बुद्ध、महावीरआदिकेरूपमेंअनेकबारसंसारक ो सत्य का मार्ग दिखाने वाला क्षत्रिय स्वयं भटक रहा था। ऐसे संक्रमणकाल में समय की मांग को पहचानकर क्षत्रिय को उसके कर्त्तव्यपथ पर पुनः आरूढ़ करने के लिए पूज्य श्री तनसिंह जी ने श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की।
1944 年 1944 年ंहुई। पूज्य तनसिंह जी द्वारा पिलानी के राजपूत छात्ारवास मेंरह ते हुए अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इसकी स्थापना की गईथी। 20 月 20 日इस संस्था के प्रारंभिक कार्यक्रम अन्य संस्थाओं की भांति स म्मेलन、अधिवेशन、प्रस्तावआदितकसीमितरहे। 1945 年 1945 年 5 月 6 日ं हुआ तथा द्वितीय अधिवेशन राजस्थान के झुंझुनूं जिले 1946 年 11-12 日किन्तु तनसिंह जी ने जिस उद्देश्य से श्री क्षत्रिय यु वक संघ की स्थापना की थी उसकी प्राप्ति इस प्रकार की औपचारकी औपकी और सीमित प्रणाली से संभव नहीं थी, इसीलिए वे इससे सं तुष्टनहींथे। इसी बीच कानून की पढ़ाई के लिए तनसिंह जी नागपुर चले गए। इस दौरान कई अन्य संस्थाओं के संपर्क में रहते हुए अपने उद्देश्य के अनुरूप उपयुक्त प्रणाली हेतु पूज्य श्री का चिंतन चलतारहा। अपने अनुभव व चिंतन से उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक स ंघ के लिए एक 'सामूहिक संस्कारमयी मनोवैज्ञानिक क्मप्रण ली' की रूपरेखा तैयार की। 1946 年 21 月 21 日ड स्थित मलसीसर हाउस में संघ की तत्कालीन कार्यकारिणी के सदस्यों की बैठक बुलाई और श्री क्षत्रिय युवक संघ के लिए एक नवीन प्रणाली का प्रस्तावरखा। तनसिंह जी ने अपने साथियों को अपनी विचारधारा, उद्देश् य और प्रस्तावित प्रणाली के बारे में विस्तार से समझाया। 22 小时 22 小时1946 年,1946 年मान स्वरूप में स्थापना हुई। 25-31 月 25-31 日हले शिविर का आयोजन हुआ। शिविर में अनुशासन के स्तर और शिक्षण की गरिमा को देखकर तनसिंह जी व अन्य साथियों को इस प्रणाली में पूर्ण विश्ं ‘ सामूहिक संस्कारमयी कर्मप्रणाली' के माध्यम से समाज में का् यकररहाहै।