क्षात्रधर्म का पालन करना ही श्री क्षत्रीय युवक संघ का उद्देश्य है

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15 ม.ค. 2567
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श्री क्षत्रिय युवक संघ SHRIKYS APP

आदिकाल से संसार में सत्य न्याय के लिए संघर्ष करने का दायित्व क्षत्रिय ने निभाया है। विष तत्व का नाश करने และ अमृत तत्व की रक्षा करने की क्षात्र-परंपरा संसार के अस्तित्व के लिए आवश्यक และ अनिवार ्य है। क्षत्रिय ने अपने अचिन्त्य बलिदानों द्वारा इस परंपरा का सातत्य बनाए रखा และ इसके कारण ही भारत ने प्रत्येक क्ष. ेत्र में विкास के प्रतिमान स्थापित किए। विश्वगुरु และ सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत की भौतिक และ आध्यातमिक समृद्धि पर जब अर्द्धसभ्य सभ्य และ अव икसित विदेशियों की दृष्टि पड़ी तो उन्होंने छल-बल से भारत की संपदा को लूटने व नष्ट करने का प्रयत्न किा। बर्बर जातियों द्वारा भारत की संपत्ति และ उसके मानबिन्दुओं पर किए जाने वाले इन आक्रमणों के विरुद्ध क्षत्रिय ों ने अनेकों शताब्दियों तक संघर्ष किया। अपने सर्वस्व का बलिदान करके भी उन्होंने भारतीय संस्कृति को जीवित रखने का प्रयत्न किया। शताब्दियों के इस संघर्ष ने क्षत्रियों की राज्य-सत्ता को तो नष्ट किया ही, किन्तु साथ ही शत्रु के छल-प्रपं च ने क्षत्रिय चरित्र पर भी आघात कर के उसे निर्बल बनाने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप सैंकड़ों वर्षों की गुलामी के बाद जब भारत अपनी स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था तो पूरा देश. नए भविष्य को लेकर आशान्वित था। विभिन्न वर्ग वसमाज नई व्यवस्था वाले नए भारत में अपनी भूमिका तय कर रहे थे किंतु क्षत्रिय समाज उस समय कि ंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में था। त्याग และ बलिदान की नींव पर खड़े अपने स्वधर्म को भूलकर क्षत्रिय जाति अपनी उपयोगिता को खो देने की स्थिति में पहें चुकी थी। RAM, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि के रूप में अनेक बाAR संसार को सत्य का मार्ग दिखाने वाला क्षत्रिय स्वयं भटक रहा था। ऐसे संक्रमणकाल में समय की मांग को पहचानकर क्षत्रिय को उसके कर्त्तव्यपथ पथ पुनः आरूढ़ करने के लिए पृ ूज्य श्री तनसिंह जी ने श्री क्षत्रीय युवक संघ की स्थापना की।

และपचारिक रूप में श्री क्षत्रीय युवक संघ की स्थापना 1944 में हुई। पूज्य तनसिंह जी द्वारा पिलानी के राजपूत छात्रावास में रहते हुए अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इसकी स्थापना. की गई थी। उस समय तनसिंह जी की उम्र मात्र 20 वर्ष थी। इस संस्था के प्रारंभिक कार्यक्रम अन्य संस्थाओं की भांति सम्मेलन, अधिवेशन, प्रस्ताव आदितक सीमित रेह। संस्था का प्रथम अधिवेशन 05-06 พฤษภาคม, 1945 को जोधपुर (राजस्थान) में हुआ तथा द्वितीय अधिवेशन राजस्थान के झुंझुनूं जिले के कालीपहाड़ी गांव में 11-12 मई, 1946 को आयोजित हुआ।. किन्तु तनसिंह जी ने जिस उद्देश्य से श्री क्षत्रीय युवक संघ की स्थापना की थी उसकी प्राप्ति इस प्रकार की และप चारिक सीमित प्रणाली से संभव नहीं थी, इसीलिए वे इसे संतुष्ट नहीं थे। इसी बीच कानून की पढ़ाई के लिए तनसिंह जी नागपुर चले गए। इस दौरान कई अन्य संस्थाओं के संपर्क में रहते हुए अपने उद्देश्य के अनुरूप उपयुक्त प्रणाली हेतु पूज्य श्री का चिंतन चलता रहा। अपने अनुभव व चिंतन से उन्होंने श्री क्षत्री युवक संघ के लिए एक सामूहिक संस्कारमयी मनोवैज्ञानिक कर्मप ्रणाली’ की रूपरेखा तैयार की। तत्पश्चात 21 ธันวาคม 1946 में उन्होंने जयपुर के स्टेशन रोड स्थित मलसीसर हाउस में संघ की तत्कालीन कार्यकारिणी के सदस्यों की बैठक BUलाई และ श्री क्षत्रीय युवक संघ के लिए एक नवीन प्रणाली का प्रस्ताव रखा। तनसिंह जी ने साथियों को अपनी विचारधारा, उद्देश्य प्रस्तावित प्रणाली के बारे में विस्तार समझाये समझाया। सभी के द्वारा सहमति प्रदान करने पर अगले ही दिन अर्थात 22 दिसंबर, 1946 के शुभ दिन श्री क्षत्री युवक संघ की अप ने वर्तमान स्वरूप में स्थापना हुई। जयपुर में ही 25-31 दिसंबर तक श्री क्षत्री युवक संघ के पहले शिविर का आयोजन हुआ। शिविर में अनुशासन के स्तर และ शिक्षण की गरिमा को देखकर तनसिंह जी व अन्य साथियों को इस प्रणाली में पूर्ण. विश्वास हो गया तथा तभी से श्री क्षत्री युवक संघ निरंतर अपनी 'सामूहिक संस्कारमयी कर्मप्रणाली' के माध्यम से से से माज में कार्य कर रहा है।
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